तुम न आये एक दिन...
तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक;
हम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलक;
दर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन;
रहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर दो दिन तलक;
देखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किस की चश्म-ए-मस्त;
रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक;
गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बाद;
तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक;
क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये;
घर से जो निकले न अपने तुम "ज़फ़र" दो दिन तलक।
~ Bahadur Shah Zafar
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